गांव में सूरज ढल चुका था, लेकिन हवेली के भीतर की रौशनी और गूंज... किसी मेले से कम नहीं ...
अदित्य दरवाज़े के पास पहुँच चुका था, उसकी साँसें तेज़ थीं, और नज़रों में झलकता डर अब धीरे-धीरे गुस्से ...
अदित्य की उंगलियाँ अब भी उस दीवार पर थीं, जो जल रही थी… पर जलकर राख नहीं हो रही ...
अदित्य ने पलटकर छत के कोने में झाँका, लेकिन वहाँ कुछ नहीं था।बस दीवार पर हवा से हिलती बेलें, ...
कृष्णा की लाश अभी तक बिस्तर पर ही थी। ठाकुर जमीन पर बैठा, रोता जा रहा था, और बाकी ...
"ये चौथी लाश है इस महीने की..."पुराने कुएं के पास खड़े ठाकुर राजवीर की आँखों में डर साफ़ झलक ...